लेखनी प्रतियोगिता - खेल.. किस्मत का
खेल... किस्मत का
कभी कचरे में पड़ी थी वो,
जिंदा बचेगी भी या नहीं,
किसी को नहीं थी खबर,
टूटती सांसों से लड़ती रही वो,
नई जिंदगी के लिए,
थी वो इतनी मजबूत, इतनी प्रखर,
जिन्होंने उठाया था उसको,
लगाया था अपने सीने से,
अपना अरमान समझकर,
बहुत जतन से पाला था उसको,
अपनी उलझनों से उलझकर,
अपनी मेहनत के दम पर,
बदला था उसने, अपनी किस्मत का खेल,
तोड़ डाली उसने बदनसीबी की बेड़ियां,
और चमकते भविष्य से कर लिया,
अपने हाथ की लकीरों का मेल।।
प्रियंका वर्मा
9/9/22
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Punam verma
10-Sep-2022 08:52 AM
Nice
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Ajay Tiwari
10-Sep-2022 08:29 AM
Nice
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Abhinav ji
10-Sep-2022 08:06 AM
Nice👍
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